Narsinghgarh, मध्यप्रदेश का मिनी कश्मीर और मेरे अनुभव
नमस्कार, मेरी यात्रा की कहानी बहुत ही रोचक तरीके से शुरू हुई। सफ़र से कुछ एक या दो दिन पहले की बात रही होगी, में रात के समय अपने बिस्तर पर लेता हुआ, अपने स्मार्टफ़ोन पर इंस्टाग्राम में कुछ रील्स देख रहा था और कुछ ही रील्स के बाद मुझे नरसिंहगढ़ के कुछ वीडियोस दिखे और में उन्हें देख कर मोहित हो गया। उन्ही में से किसी वीडियो पर मैंने कॉमेंट कर दिया और कुछ अन्य रील्स देखने के बाद सो गया। जब में दूसरे दिन जागा और अपने फ़ोन को उठाया तो मेरी नज़र इंस्टाग्राम के नोटिफिकेशन पर गयी। जिस रील पर कॉमेंट किया था उस अकाउंट से मेसेज आया। मैंने थैंक्यू कहकर नरसिंहगढ़ आने की मंशा बता दी तो उधर से सकारात्मक जवाब आया।
फिर मैंने अपने दोस्तों और जान पहचान वालों से नरसिंहगढ़ के बारे में पूछा जो नरसिंघगढ़ के ही रहने वाले हैं, उन्होंने भी सकारात्मक जवाब दिया। तब मैंने इंस्टाग्राम वाले भाई ( जिनसे मेरी मेसेज के ज़रिये बात हुई थी ) से बाकी बातें निर्धारित कर लीं। मन में नरसिंहगढ़ पहुंचने की उत्सुकता लिए वहां जाने की तैयारी करने लगा। कुछ कपडे और व्लॉग के लिए कैमरा, कैमरा बैग में ज़रूरी सामान लेकर निकल पड़ा अपने सफर पर।
मुझे घर से निकलने में देर हो गई थी, इसलिए में नरसिंहगढ़ 11:30 बजे पंहुचा और श्रीनू ( जिनसे मेरी मेसेज के ज़रिये इंस्टाग्राम पर बात हुई थी ) को कॉल किया। वो किसी काम में बिजी होने के कारण मुझे इंतज़ार करने को बोला। मैंने सोचा, क्यों न मेरे अन्य मित्र से भी मिल लेते है जो नर्सिंघ्गढ़ में ही रहते है। तब में लोकेश शर्मा जी (लोकु भैया) से मिलने चला गया। कुछ देर उनसे बात करते हुए चाय का आनंद लिया और पुरानी बातें याद करने लगे। कुछ ही देर बाद श्रीनू भाई का कॉल आया, और कहा की में किसी को भेज रहा हूँ आपके पास, मैंने ठीक है कहकर अपनी लोकेशन शेयर कर दी।
अब एक और मज़ेदार बात हुई, असल में जिस व्यक्ति से मैंने इंस्टाग्राम के ज़रिये मिला उसी दिन मैंने इंस्टाग्राम पर एक और व्यक्ति की रील पर कमेंट किया था। ये वही व्यक्ति निकला, हमने एक दूसरे को हेलो कहा और मैं और यश जो मुझे लेने आया था, आगे के सफर की प्लानिंग करने लगे और पहला डेस्टिनेशन “नरसिंहगढ़ का किला” निर्धारित किया।
हम कुछ देर में किले के नीचे वाले रास्ते पर पहुंच गए वहां पर हमें श्रीनू भी मिल गए। फिर हम तीनो किले की ओर चलदिये। चढ़ाई ज़्यादा नहीं है पर गर्मी की वज़ह से किले तक पहुंचने में हमारी हालत ख़राब होने लगी थी। जैसे तैसे किले के दरवाज़े तक पहुंचे तो पता वहां दरवाज़ा बंद था। फिर श्रीनू ने किले में उपस्थित गार्ड को कॉल किया और गेट खोलने कहा। किले में जाने के लिए सभी को 20 रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से फ़ीस देनी होती है।
किले में अंदर आते ही राम जी का है, जहाँ हमने दर्शन किये और किले के अंदर प्रवेश किया। किला बहुत ही शानदार है, बस में मध्यप्रदेश सरकार से निवेदन करूँगा की किले के रख रखाव पर थोड़ा ध्यान दे। किले के काफी हिस्से ज़ार ज़ार हालत हैं। किले में आज भी पुरानी कलाकारी के बहुत सारे अवशेष है जो देखने से है की वे अपने कितने सुन्दर रहे होंगे। फिर किले के ऐसे हिस्से में गए जहाँ पर स्त्री फिल्म की शूटिंग हुई थी फिर हमने फोटोज क्लीक किये और बहुत सारे ड्रोन शॉट्स लिए। नरसिंहगढ़ किले से नरसिंहगढ़ शहर का नज़ारा देखते ही बनता है। क़िले में घूमते घूमते हमे इतना समय हो गया था की दूसरी जगह जाने का ख़याल ही नहीं रहा। दिन ढलने लगा था और अँधेरा बढ़ने लगा था। फिर श्रीनू और यश ने मुझे कहा की इस समय जल मंदिर चलना ठीक रहेगा।
यह मंदिर एक खूबसूरत से तालाब के बीच में बना हुआ भगवन महादेव का है। हम वहां पहुंच गए और पहुंचते ही मंदिर की सुंदरता देखकर मंत्रमुग्ध हो गये। ढलते हुए सूरज की रौशनी जो मंदिर पर पड़ रही थी उसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है। आप तस्वीर देख कर ख़ुद अंदाज़ा लगा सकते है। दर्शन करने और कुछ ड्रोन शॉट्स निकालने में हमे अँधेरा हो गया।
फिर मैंने श्रीनू और यश से कहीं रुकने की व्यस्था के बारे में पुछा तो उन्होंने कॉल करके जो नरसिंहगढ़ के अच्छे होटल थे के चार्जेस पता किये। चार्जेस सुनने के बाद मैंने उनसे कहा की इससे अच्छा तो मी वापस अपने घर जाकर दूसरे दिन वापस आ जाऊंगा , तब भी मुझे इतना कॉस्टली नहीं पड़ेगा। फिर यश ने कहा की आप मेरे यहाँ रुक सकते हो अगर कोई दिक्कत न हो तो, शुरू में तो में काफी झिझक रहा था फिर मैंने कुछ सोच कर हाँ कह दिया।
श्रीनू और यश को किसी काम से जाना था और मुझे भी लोकू भैया से मिलना था यश से 8:30 बजे घर तुम्हारे घर पहुँच जाऊंगा का बोलकर में निकल दिया। लोकु भैया में काफी दिनों बाद मिले थे तो हमने डिनर का प्लान बनाया पर वो पहले ही खाना खा चुके थे तो एक होटल में जाकर हमने कुछ बातें की और सिर्फ मैंने खाना खाया। और दूसरे दिन के प्लान के बारे में डिसकस किया और सुबह 5 बजे मिलने का तय किया। फिर कुछ देर बाद में यश के यहाँ चला गया।
मुझे यश के घर पहुंचने तक रात के 9 बज चुके थे। वहां यश ने अपने परिवार से परिचित करवाया। सभी ने मुझसे परिवार के सदस्य की तरह व्यवहार किया। और फिर भाभी यानि यश की माँ ने खाने के लिए ऑफर किया पर मैंने उनको को बताया की मैंने खाना खा लिया, तो उन्होंने मुझे घर के सदस्य की तरह डाँटते हुए कहा की कल का खाना तुम यही खाओगे। एकदम से मुझे उनमे माँ सा व्यवहार देख कर अपने आपको खुशनसीब समझा , और फिर भाभी माँ को हाँ कह कर कुछ देर बाद हम सोने के लिए चले गए और मैंने अपने सभी बैटरीयों को चार्ज पर लगाया फिर कुछ देर बात करने के बाद सो गए।
सुबह 5 बजे में लोकु भैया के घर चला गया जैसा हमने पिछली रात को प्लान किया था, और फिर हम शांका श्याम जी मंदिर के लिए चल दिए। शांका श्याम जी का मंदिर नरसिंघगढ़ से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर है। वहां पहुंच कर हमने दर्शन किये और कुछ खूबसूरत ड्रोन शॉट्स लिए, मंदिर बहुत ही खूबसूरत है और भव्य है। फिर कुछ देर वह के पंडित जी और मंदिर के सेवादार से मुलाकात की और फिर उन्होंने हमे चाय पिलाई। उनका व्यवहार बहुत ही सरल था, फिर कुछ देर के बाद हम दोनों हमारी अगली मंज़िल की और चल दिए।
हमारी अगली मंज़िल थी चिडिखो, चिडिखो नरसिंघगढ़ से करीब 10 किलोमीटर है जो मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध वन्यप्राणी अभ्यारण्य में से एक है जहा आपको काफी ख़ूबसूरत जानवर जैसे की हिरण, ख़रगोश, शेर आदि देखने का मौका मिल सकता है। हमे तो सिर्फ कुछ हिरण देखने का ही सौभाग्य मिला। वहाँ हमें काफी शॉट्स लेने का मन था पर हमे ड्रोन का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं मिली। तो हमने भी उनके इस नियम की गरिमा को नहीं तोडा और जो थोड़ी बहुत फोटोज और कुछ वीडियोस निकाल सके निकाल लिए। ड्रोन का इस्तेमाल न करपाने का दुःख तो था पर कोई बात नहीं फिर कभी कोशिश करेंगे।
यहाँ से हमे जल्दी निकलना भी था क्यूंकि यश के घर, भाभी माँ ने खाना तैयार कर लिया था, और में लेट नहीं होना चाहता था। फिर लोकु भैया को उनके घर छोड़ने के बाद में यश के घर पहुंच गया और भाभी माँ के हाथ का खाना खाया फिर श्याम के समय तीन जगह और एक्स्प्लोर करना था और अभी दोपहर के 12:30 ही बजे थे, तो हमने भरी गर्मी में न घूमने के बजाय श्याम को निकलने का प्लान किया। और फिर हम दोनों रूम में जाकर छोटी सी नींद ली। करीब 4:30 बजे हम अगली मंज़िल के लिए निकल गए, और कुछ ही देर में हम छोटा तालाब पर पहुंचे और कुछ ड्रोन शॉट्स निकले और फिर हम दोनों काक शिला माता मंदिर के लिए चल दिए।
काक शिला मंदिर नरसिंघगढ़ के और आस पास के लोगों के लिए काफी महत्व रखता है। ये माता रानी का मंदिर पूर्ण रूप से पत्थर का बना है, सही मायने में इसे एक पत्थर से बानी गुफ़ा कहना गलत नहीं होगा, जिसमें माता रानी के साथ साथ अन्य देवी देवताओ को भी मूर्ति रूप में विराजित किया गया है। इस मंदिर को काक शिला इसलिए कहा जाता है क्यूंकि दूर से देखने पर इस मंदिर की आकृति कौए के खुले मुख के तरह दिखाई देती है। कौए को भारत में काक के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर में देवी माँ के बगल में ही भैरव बाबा का भी स्थान है, ऐसा कहा जाता है की माता के दर्शन के बाद भैरव बाबा के दर्शन न करें तो पुण्य फ़ल की प्राप्ति अधूरी होती है। यहां से दर्शन करने और कुछ फोटो और ड्रोन वीडियो लेने के बाद, यश और मैं नरसिंहगढ़ के एक अन्य प्रसिद्ध मंदिर हनुमान मंदिर गए, जिसे नरसिंहगढ़ में गढ़ी सरकार के नाम से भी जाना जाता है।
काक शिला मंदिर से उतरते ही हमारी मुलाकात श्रीनू से हुई और फिर हम तीनों गढ़ी सरकार हनुमान मंदिर के लिए निकल पड़े, यह मंदिर नरसिंहगढ़ के मुहाने पर एक पहाड़ी पर बना है और मंदिर तक दो पहिया या चार पहिया वाहन से सीधे वहां पहुंचा जा सकता है। मैं, यश और श्रीनू यहां पहुंचे और हनुमान दर्शन किये। यहाँ पर हमे पंडित जी ने राम जी की मूर्ति के दर्शन भी करवाए जी हूबहू अयोध्या के राम लला की मूर्ति के तरह ही बनाया गया है। मूर्ति बहुत ही खूबसूरत थी मैंने हुच तस्वीरें और सिनेमेटिक वीडियो भी निकाले।
और फिर हम तीनों मंदिर की छत पर गए और ड्रोन से कुछ फोटो और खूबसूरत वीडियो क्लिक करने के बाद हम मंदिर से नीचे आ गए, थोड़ी देर बातें की और फिर मैंने अलविदा कहा और अपने घर के लिए निकल गया और इस तरह मेरी यात्रा समाप्त हुई। कैसी लगा आपको मेरा सफ़रनामा, कमेंट में अपने ख़्याल ज़रूर शेयर करें। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।