Raisen Fort: शानदार रायसेन के किले की मेरी यादगार यात्रा
Raisen Fort: रायसेन किले की अपनी एक अलग कहानी है। इंटरनेट पर मिली जानकारी को पढ़ने और समझने के बाद मुझे लगा कि मुझे कम से कम एक बार इस किले को देखना चाहिए। इस ब्लॉग के माध्यम से मैं आपके साथ रायसेन के भव्य किले के इतिहास के साथ-साथ अपना अनुभव भी साझा करुंगा और हां, अपने द्वारा खींचे गए फोटोग्राफ भी आपको दिखाउंगा, तो अंत तक पढ़ते रहिए।
रायसेन मध्य प्रदेश राज्य की राजधानी भोपाल से लगभग 45 किलोमीटर दूर है और रायसेन किला यहीं एक पहाड़ी पर स्थित है।
Raisen Fort कई एकड़ में फैला हुआ है और इसमें विशाल पत्थर की दीवारें और दरवाज़े हैं। किले के भीतर, मंदिर और अन्य कई ऐतिहासिक धार्मिक संरचनाएँ हैं। इस किले में शिव का एक प्राचीन मंदिर और शेर शाह सूरी द्वारा बनवाई गयी एक मस्जिद है। महल के अलावा, किले में कई छोटे कक्ष और पीछे की ओर एक तालाब है जो गर्मी के कारण मुझे सूखा मिला था लेकिन बरसात के मौसम में पानी से भर जाने पर बहुत सुन्दर लगता होगा।
तो ये थी इस किले से जुड़ी कुछ इतिहास की जानकारी, अब मैं आपको रायसेन किले के अपने अनुभव के बारे में बताता हूँ।
मैं इस ट्रिप की प्लानिंग काफी समय से कर रहा था और इसके लिए मैंने रविवार का दिन चुना। मैं सुबह से ही इस ट्रिप की तैयारी कर रहा था और करीब 9:30 बजे अपने घर से निकल पड़ा। रायसेन फोर्ट पहुँचने में मुझे करीब 11:30 बज गए थे। आप कहेंगे कि 45 किलोमीटर की दूरी तय करने में 2 घंटे कैसे लग सकते हैं, तो मैं आपको बता दूँ कि जिस समय मैं इस ट्रिप पर निकला था, उस समय यहाँ सड़क निर्माण का काम चल रहा था और कई जगह सड़क खुदी हुई थी और थकान के कारण मैंने किले पर जाने से पहले एक होटल में नाश्ता किया ताकि मुझे 3-4 घंटे तक खाने की जरूरत ना पड़े। और फोर्ट पहुँचने से पहले मैंने अपने साथ 2 पानी की बोतलें भी रख ली थीं क्योंकि मुझे नहीं पता था कि मुझे फोर्ट पर कोई दुकान मिलेगी या नहीं।
किले तक पहुँचने के दो रास्ते हैं, एक तो आप सीधे गाड़ी से ऊपर जा सकते हैं और दूसरा रास्ता जो मैंने चुना वो सीढ़ियाँ हैं। मैं किले को ठीक से देखना चाहता था इसलिए मैंने सीढ़ियाँ चुनीं, आप चाहें तो सीधे गाड़ी से किले तक पहुँच सकते हैं।
मैं स्वस्थ हूँ इसलिए मुझे सीढ़ियाँ चढ़ने में ज़्यादा दिक्कत नहीं हुई लेकिन आपको अपनी सेहत के हिसाब से सीढ़ियों का रास्ता चुनना चाहिए। हालाँकि कहीं सीढियाँ और कहीं सपाट रास्ता है, मैंने सीढ़ियों की गिनती नहीं की है लेकिन लगभग 300 सीढ़ियाँ होंगी। बीच-बीच में बैठने की जगह भी है। फिर भी अपनी क्षमता के हिसाब से ही फैसला लें। मुख्य प्रवेश द्वार को सोहेल गेट के नाम से जाना जाता है, बहुत ही मजबूत और रक्षात्मक है।
जैसे ही मैं ऊपर पहुंचा तो मुझे एक लोहे का गेट मिला और उसमें प्रवेश करने के बाद जो कुछ भी मैंने देखा, इतिहास की कहानियों के वे दृश्य जो मैंने इस किले के बारे में पढ़े थे, मेरी आंखों के सामने तैरने लगे।
रायसेन किले से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध गाथाओं में से एक कहानी है, कई राजपुतानियों ने आक्रमणकारी ताकतों से बचने के लिए अपने परिवार के साथ जौहर (आत्मदाह) कर लिया था। उस दृश्य के बारे में सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। ऐसा कदम उठाने के लिए कितनी हिम्मत की जरूरत होती है। यह तो सिर्फ वो राजपूत महिलाएं ही जानती होंगी। क्योंकि उन्हें पता था कि उनके साथ क्या हो सकता है। अपनी इज्जत और मान-सम्मान बचाने के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाली महिलाएं कितनी बहादुर रही होंगी। लेकिन शायद आज की पीढ़ी को यह बात समझ में नहीं आती।
जैसे-जैसे मैं किले के अंदर आगे बढ़ता गया, मुझे समझ में आने लगा कि आक्रमणकारी इस पर कब्ज़ा क्यों करना चाहते थे। क्योंकि इस किले को इस तरह से बनाया गया है कि कोई भी आक्रमणकारी आसानी से इस महल में प्रवेश नहीं कर सकता और जगह-जगह निगरानी टावर भी बने हुए हैं ताकि आक्रमणकारियों पर नज़र रखी जा सके।
रायसेन किले के बारे में कहा जाता है कि यहां प्राचीन काल की आत्माएं निवास करती हैं, लेकिन मैं इस तथ्य की पुष्टि नहीं कर सकता, क्योंकि कई बार लोग ऐसी अफवाहें लोगों में फैला देते हैं। मुझे नहीं पता कि इसमें कितनी सच्चाई है और कितनी झूठ। यह देखने में डरावना लगता है, लेकिन ऐसा इसलिए भी हो सकता है क्योंकि यहाँ ज़्यादातर समय कोई नहीं रहता, लेकिन यहाँ कुछ गार्ड हैं जो शायद इस जगह पर नज़र रखने के लिए रखे गए हैं। अगर यहाँ भूतों का डर होता तो यहाँ ये गार्ड क्यों होते, ये भी इंसान हैं, अगर यहाँ कोई भूत होता तो ये भी डर जाते।
महाशिवरात्रि के दौरान शिव मंदिर में एक वार्षिक मेला आयोजित किया जाता है, जिसमें हजारों भक्त और तीर्थयात्री शामिल होते हैं। यह आयोजन एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक आकर्षण और उत्सव का समय होता है। रायसेन का किला और शिव मंदिर हिंदुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल जैसा है, जो पूरे क्षेत्र से पर्यटकों को आकर्षित करता है।
वैसे अगर आप इस किले की खूबसूरती का आनंद लेना चाहते हैं तो आपको बरसात के मौसम में आना चाहिए और अगर आप यहां की सांस्कृतिक छवि देखना चाहते हैं तो शिवरात्रि पर मेले के दौरान आना चाहिए। मेरे द्वारा खींचे गए ओर भी फोटो निचे लगा दूंगा, जिससे आप फिलहाल इस किले की खूबसूरती का आनंद ले सकें।
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मैं आपका दोस्त पंकज शर्मा मेरी ज़िन्दगानी के इस सफ़रनामे का एहि अंत करता हूँ और आपसे मुलाकात होगी मेरे अगले ट्रेवल ब्लॉग में, मेरे सफ़र की एक नयी कहानी के साथ। आप चाहें तो नीचे दिए गए अन्य ब्लॉग भी पढ़ सकते हैं।
धन्यवाद !